ayiye apko kuchh image dikhata hoo.
भगवान के साथ योगयुक्त हमारी आध्यात्मिक सत्ता की ज्योति एवं शक्ति से सहज, स्वतन्त्र और निर्भ्रान्त रूप में उदभूत होनेवाला दिव्य कर्म ही इस सर्वांगीण कर्मयोग की चरम अवस्था है।
मनुष्य के पूर्ण आध्यात्मिक जीवन के लिये ठीक अवस्था यह होगी कि विराट् तथा परात्पर पुरुष को अपने में ग्रहण करने के ढंग और प्रकार में उसे हेर-फेर की पूरी स्वतन्त्रता हो।
इससे कभी-कभी एक मिथ्या परिणाम निकाला जाता है कि आध्यात्मिक पुरुष उस स्थिति को, जिसमें दैव या ईश्वर या अतीत कर्म ने उसे रखा है, शिरोधार्य करके उस कुटुंब, वंश, जाति, राष्ट्र और व्यवसाय के, जो जन्म और परिस्थिति से उसके अपने हैं, क्षेत्र एवं ढांचे के भीतर कर्म करने में सन्तुष्ट रहकर उनका अतिक्रमण करने या किसी महान् लौकिक उद्देश्य का अनुसरण करने की चेष्टा नहीं करेगा ओर शायद उसे ऐसा करना भी नहीं चाहिये।
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